मॉब लीचिंग को कैसे रोका जाए, आखिर क्या है मॉब लीचिंग


देश में मॉब लीचिंग  की घटनाओं की एक लम्बी फेरलिस्ट  है। अगर सरकारी आकड़ो की बात करे तो गृह मंत्रलाय की रिपोर्ट के अनुसार 2014 से वर्ष 2018 तक के  समयांतराल तक  9 राज्यो में कुल 40 घटनाओ की एक लिस्ट है। जिसमे कुल 45 लोगो ने अपनी जान गवाई है। जबकि एक ग़ैरसरकारी  संगठन के अनुसार  मॉब लीचिंग से कुल 70 लोगो ने अपनी जान गवाई है। मॉब लीचिंग की घटनाओ में अधिकतर मामले गौरक्षा,  साम्प्रदायिक हिंसा,  बच्चे चुराने की घटना, और धार्मिक मामले है। जिनमे बेहद सुनियोजित तरीके से   इन मामलों में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगो को सीधे तौर पर निशाना बनाकर हमला किया गया। मॉब लीचिंग  की। घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए संसद में कई बार इस मुद्दे को लेकर बहस हुई लोगो ने विरोध प्रदर्शन किया । कई लोगो ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मो के जरिये अपनी बात रखी कई लोगो ने तो सोशल मीडिया पर जातिगत उन्माद फैलाने की कोशिश की जिससे हिन्दू मुस्लिम में  दंगा फैल सके। आखिर क्या है ये माब लीचिंग क्यो आखिर ये लोगो की जान के पीछे पड़ा है। इनमे से पीड़ित कई परिवार ऐसे भी ही है जिनको सही मायनों में अभी तक मॉब लीचिंग का अर्थ भी न पता है बस अफसोस है उनको अपने प्रियजनों को खोने का


 आपको बताते चले कि भीड़ के मनोविज्ञान के ऊपर चर्चा एक अलग तरह की घटना के तौर पर शुरू हुई। जब हम फ्रांसीसी क्रांति की भीड़ या, फिर कु क्लक्स क्लान की नस्लीय भीड़ को इसका उदाहरण मानते थे।तब भीड़ के मनोविज्ञान में एक काले व्यक्ति को सफ़ेद लोगों की भीड़ द्वारा मारने का पुराना मसला ही चर्चा का विषय होता था।यहां तक की गॉर्डन ऑलपोर्ट और रोजर ब्राउन जैसे बड़े मनोवैज्ञानिक भी भीड़ के मनोविज्ञान को एक सम्मानजनक विषय नहीं बना सके
 हम 21 वी सदी में पहुँचने के बाद मंगल गृह पर रहने की सोच रहे है। लेकिन अभी भी कुछ लोग जातिगत, धर्म , सम्प्रदाय में पड़कर  किस तरह की जीवनशैली में रह रहे है। कभी गाय के नाम पर तो कभी जय श्रीराम के नाम पर गन्दी राजनीति करके बेहूदे कृत्य करके जातिगत धार्मिक उन्माद फैलाकर कुछ धर्म के पाखंडी निर्दयी अत्यंत क्रूर प्रवत्ति वाले राक्षस रूपी भेड़िये एक सभ्य मानव समाज के लिए इस धरती पर बोझ बनकर जी रहे है। यह सभ्य मानव समाज के  लिए एक बोझ एवं कलंक है। अभी हाल में ही ताजा मामला झारखंड के धतकिडीज गांव में  का है।  जहाँ  तबरेज अंसारी  मुस्लिम (22)    युवक को बाइक चुराने के शक में बुरी तरह पीटा गया था। इसके बाद 23 जून को एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।पुलिस के अनुसार  उसके कब्जे से चोरी की मोटरसाइकिल तथा कुछ अन्य वस्तुएं बरामद की गई थीं। यह मामला एक वीडियो के वायरल होने के बाद प्रकाश में आया। जिसमें आरोपी पंकज मंडल पेड़ से बंधे तबरेज अंसारी को पीटते हुए दिख रहा है। और तबरेज से जबर्दस्ती  "जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगाने को बोल रहा था , जब तबरेज अंसारी ने मना किया तो उग्र भीड़ ने तबरेज को बहुत बुरी तरह से मारा पीटा।  जिससे उसकी तीन दिन बाद मौत हो गई।  मेरा प्रश्न है ये भीड़ कौन होती है न्याय करनी वाली क्या देश की अदालत  सक्षम नही य हमारा  पुलिस तंत्र आखिर क्या वजह है जहाँ ऐसे ममालो में धार्मिक उन्माद फैलाया जाता है।

 देश मे तमाम मानवाधिकार संगठन है ।मैं उन  तमाम मानवधिकार संगठन से पूछना चाहता  हू  की जब धर्म सम्प्रदाय के ममालो की बात आती है तो वह खुलकर क्यो नही पीड़ित पक्ष की* *मदद करते है। ऐसा कोई नया मामला नही है जब मानवधिकार संगठन अपनी दुम छुपाते हुए दिखाई पड़ता है। झारखंड में भीड़ की हिंसा का शिकार हुए तबरेज अंसारी के चाचा मरसूद आलम ने उस दावे की पोल खोल दी।जिसमें कहा जा रहा था कि 15 साल पहले तबरेज के पिता की भी मौत मॉब लिंचिंग के दौरान हुई थी।तबरेज के चाचा ने कहा कि दोस्तों के साथ विवाद के बाद उसके (तबरेज) पिता की हत्या हुई थी।मरसूद आलम ने कहा कि मैं ऐसी खबरों का* *खंडन करता हूं, जिसमें कहा जा रहा है कि तबरेज की ही तरह उसके पिता की 15 साल पहले मॉब लिचिंग के दौरान हत्या कर दी गई थी। दोस्तों के साथ विवाद के बाद 15 साल पहले हत्या हुई थी और हमें उनका शव एक हफ्ते बाद मिला था।बता दें* *कि कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि 15 साल पहले तबरेज अंसारी के पिता मस्कूर अंसारी भी भीड़ की हिंसा का शिकार हो गए थे
 *दावे के मुताबिक जमशेदपुर* *के बागबेड़ इलाके में चोरी करते हुए मस्कूर को भीड़ ने पकड़ लिया था।*
 *जैसा कि तबरेज अन्सारी पर चोरी करने के आरोप लगे थे तो उसको  पकड़कर पुलिस के हवाले किया जा सकता था न कि उसको भीड़ में ले जाकर जयश्रीराम और जय हनुमान के नारे लगाकर उसके गुनाहों पर पर्दा डालते हुए  कुछ लोगो ने धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर ओछी* *राजनीति करनी  चाही।जो मॉब लीचिंग के नासूर के रूप में उभरा ।देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं को जवाब देने की बजाए संसद में कहते हैं कि सबसे बड़ी लिंचिंग की घटना तो देश में 1984 में हुई थी। हर बात में सियासत उधर, देश के प्रधान सेवक संसद में बयान देते हुए कहते हैं कि लोकतंत्र में मॉब लिंचिंग के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई हो और पीएम मोदी संसद के पटल से ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करते हैं।*
" *अभी हाल में ही यूपी के उन्नाव जिले  के  नेवरना* *पुलिस चौकी के सामने सामने रोड रेज का  एक मामला प्रकाश में आया था। जहाँ एक लोडर चालक बर्फ लादकर अपने गाँव  जा रहा* *था  तभी नेवरना पुलिस चौकी के निकट  बरात जा रहे  दूल्हे की गाड़ी और लोडर की  बगल में मामूली टक्कर हो गई। "बातचीत इतनी बढ़ गयी कि दूल्हे पक्ष के लोग इतने उग्र हो गए कि उन्होंने नेवरना पुलिस चौकी के सिपाहियों के सामने।लोडर चालक की बेहद बर्बरतापूर्वक   पिटाई कर दी जिससे उसकी जान चली गई।  आखिर ऐसी कितनी बड़ी बात थी जो इतनी हिंसक हो गई कि उग्र भीड़ ने मौजूद पुलिस कर्मियों के सामने एक व्यक्ति की कूटकर  हत्या कर दी। इस मामले को लेकर पुलिस भी अपना बचाव करती देखी, और जनपद में तमाम मानवधिकार
  संगठन है जो हाथ पर  हाथ रखकर मूकदर्शक बनकर तमाशा देखने मे मशगूल रहे।सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा है कि मॉब लिंचिंग की घटना होने पर तुरंत FIR, जल्द जांच और चार्जशीट, छह महीने में मुकदमे का ट्रायल, अपराधियों को अधिकतम सज़ा, गवाहों की सुरक्षा, लापरवाह पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई, पीड़ितों को त्वरित मुआवज़े जैसे कदम राज्यों द्वारा उठाए जाएं।इन सभी विषयों पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अनेक फैसले दिए हैं, जिन्हें लागू नहीं करने से मॉब लिंचिंग के अपराधियों का हौसला बढ़ता है।नई गाइडलाइनों से पीड़ित पक्ष को राहत शायद ही मिले, हां, अधिकारियों के कागज-पत्तर और मीटिंगों का सिलसिला बढ़ जाएगा।
 मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) की तर्ज पर मानव सुरक्षा कानून (मासुका) यदि लाया गया, तो इससे अनेक नुकसान हो सकते हैं।राजनीतिक संरक्षण की वजह से कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों और हरियाणा में जाट आंदोलन के उपद्रवियों के विरुद्ध दर्ज मामले वापस हो जाते हैं। दूसरी ओर मॉब लिंचिंग जैसे मामलों में यदि मासुका कानून लागू किया गया, तो इसके दुरुपयोग से निर्दोष लोगों को फंसाने की गुंजाइश बढ़ जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मॉब लिंचिंग को पृथक अपराध बनाने के लिए संसद द्वारा नया कानून बनाया जाना चाहिए ।IPC की धारा 302, 304, 307, 308, 323, 325, 34, 120-बी, 141 और 147-149 और CRPC की धारा 129 और 153 ऐसे अपराधों के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। इन्हें लागू करने की बजाय संसद द्वारा नया कानून लाने से ज़मीनी हालात में कैसे सुधार होगा? महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2017 को राज्यों को मॉब लिंचिंग रोकने का आदेश दिया  था। हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने की वजह से, उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया गया है, जिस पर अगले महीने सुनवाई होगी। नेताओं के संरक्षण में मॉब लिंचिंग एक संगठित उद्योग बन गया है, जिसके खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की बजाय, राज्यों के खिलाफ अवमानना नोटिस से क्या हासिल होगा

 आईटी एक्ट के तहत

 इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा देश में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति ज़रूरी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में सरकार को इस नियम को लागू कराने के आदेश दिए थे। इसके बाद फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी कंपनियों ने भारत के लिए शिकायत अधिकारी को यूरोप और अमेरिका में बैठा दिया।गोरक्षक, डायन और बच्चा चोरी जैसी अफवाहों को फेसबुक और व्हॉट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों से प्रसारित करने से रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लाचार रहते हैं।व्हॉट्सऐप में शिकायत अधिकारी के माध्यम से अफवाहों के संगठित बाज़ार पर लगाम लगाने के साथ पुलिस द्वारा पुराने कानूनों पर सख्त अमल से मॉब लिंचिंग पर यदि प्रभावी अंकुश नहीं लगाया गया, तो देश को भीड़तंत्र बनने से कैसे रोका जा सकेग।
 मानवता की दुहाई देने वाले के मानवाधिकार संगठन अगर ठोस  कार्यवाही करे तो शायद कुछ हद तक मॉब लीचिंग की घटनाओं पर अंकुश लग सकता है।
 अगर इसको लेकर कोई ठोस कदम न उठाए गए तो आने वाले समय में हम धार्मिक और जातिगत उन्मादों में  पड़कर  देश के दो फाड़ कर देंगे जिससे देश मे  ही गृह युद्ध जैसे हालात हो जाएंगे और हम किसी भी सूरतेहाल में आगे बढ़ न पाएंगे। जरूरी हो गया है कि हमे जातिगत , धार्मिक मामलों में बेहद संजीदगी से काम करते हुए ऐसा कोई कृत्य न करना चाहिए जिससे किसी भी धर्म विशेष के व्यक्ति को कोई ठेस पहुँचे और उसकी जान चली जाए।भीड़ में होने वाली घटनाओं (मॉब लीचिंग  ) को रोकते हुए एक सभ्य मानव समाज की स्थापना करनी होगी। ताकि ये घटनाएं दुबारा न हो सके।

 रिपोर्ट-
 योगेंद्र गौतम
  (नगर सवांददाता उन्नाव, यूपी)

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